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हिंदी न्यूज़ देशहम भूखे हैं, बच्चों को दूध तक नहीं पिला सकते… कर्नाटक में दलितों ने लगाया भेदभाव का आरोप
हम भूखे हैं, बच्चों को दूध तक नहीं पिला सकते… कर्नाटक में दलितों ने लगाया भेदभाव का आरोप
गांव के एक दलित नेता शिवप्पा ने आरोप लगाया कि अधिकारियों के साथ बैठक के दौरान ग्रामीणों ने उनके साथ समान व्यवहार करने पर सहमति जताई, लेकिन बाद में उनका भेदभाव जारी रहा।
Amit Kumarप्रियंका रुद्रप्पा,गडगWed, 25 Jan 2023 10:59 PM
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कर्नाटक में गडग जिले के शगोटी गांव के दलित समुदाय ने उच्च जाति के सदस्यों पर भेदभाव का आरोप लगाया है। उनका दावा है कि उन्हें क्षेत्र में मंदिरों, होटलों और किराने की दुकानों में प्रवेश करने से वंचित कर दिया गया। उन्होंने दावा किया कि अधिकारियों ने गांव की प्रमुख जाति के समूह के साथ शांति बैठकें कीं, लेकिन कोई फायदा नहीं निकला।
गांव के एक दलित नेता शिवप्पा ने आरोप लगाया कि अधिकारियों के साथ बैठक के दौरान ग्रामीणों ने उनके साथ समान व्यवहार करने पर सहमति जताई, लेकिन बाद में उनका भेदभाव जारी रहा। शिवप्पा ने कहा, “हमारे विधायक ने कभी गांव का दौरा नहीं किया। यह अनुचित है। हम नहीं जानते कि सामान्य जीवन कैसे व्यतीत किया जाता है।”
उन्होंने कहा, “मैं एक दलित नेता हूं। अगर हम समानता की मांग करते हैं, तो वे कहते हैं कि नहीं देंगे। तहसीलदार और समाज कल्याण विभाग के सदस्यों ने गांव का दौरा किया और सभी के साथ बैठक की। गांव वाले हमारे साथ बेहतर व्यवहार करने के लिए तैयार हो गए, लेकिन बाद में उन्होंने हमारे साथ वैसा ही बर्ताव जारी रखा जैसा पहले कर रहे थे। उसके बाद से कोई यह देखने नहीं आया है कि हालात में सुधार हुआ है या नहीं।”
उन्होंने कहा कि यहां के दलित समुदाय को खाने के लिए भोजन नहीं होने के कारण कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें गांव में दुकानों से किराने का सामान लेने की अनुमति नहीं है। उन्होंने कहा, “हम बहुत कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। हमारे पास खाने के लिए खाना नहीं है। हमारे बच्चों को खिलाने के लिए दूध या बिस्कुट तक नहीं है। इतना सब कुछ होने के बाद भी किसी राजनेता ने हमारे मुद्दों को हल करने के लिए कुछ नहीं किया।”
गुरुवार को शादी की रस्मों के लिए गांव के मंदिर गए एक दलित जोड़े को कथित तौर पर उच्च-जाति के ग्रामीणों ने घुसने नहीं दिया। गांव के एक दलित युवक योगेश हनुमप्पा ने आरोप लगाया कि दलितों को सामाजिक और आर्थिक रूप से बहिष्कृत करने के लिए प्रमुख जाति के लोगों ने गांव के संसाधनों पर अपने प्रभाव और नियंत्रण का इस्तेमाल किया है। हनुमप्पा ने कहा, “बहुत भेदभाव हो रहा है। हमने न्याय मांगा है, लेकिन गांव वालों और बुजुर्गों ने हमसे कहा कि हम इसके लायक नहीं हैं। बुजुर्ग हमें धमकी देते हैं कि अगर हम कानून का सहारा लिया तो वे हमारे साथ समान व्यवहार नहीं करेंगे। वे हमें गांव से बाहर रहने की धमकी देते हैं।”
उन्होंने कहा, “कल, उन्होंने हमें यहां होटल में खाना देने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर हमें कुछ भी दिया तो किराने की दुकान पर 2500 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। इसलिए, हमें दूसरे गांव से भोजन और किराने का सामान मंगवाना पड़ा। कोई भी नेता हमारे मुद्दों को सुनने नहीं आया है। हम उनसे अनुरोध करते हैं कि वे हमारे पास आएं और हमारे मुद्दों को हल करें।”
इस बीच, गडग के उपायुक्त एमएल वैशाली ने कहा कि अधिकारियों ने ग्रामीणों के साथ एक दौर की बैठक की और कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी। उन्होंने कहा, “घटना के सामने में आने के बाद, एएसपी [सहायक पुलिस अधीक्षक], और डीएसपी [पुलिस उपाधीक्षक] ने गांव का दौरा किया और उनके साथ बैठक की। यह सुनिश्चित करने के लिए कार्रवाई की जा रही है कि ऐसा दोबारा न हो।”